आत्मनिर्भर
प्रधानमंत्री
कहते है 'आत्मनिर्भर हो जाओ'। कुछ दिन पहले
राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए उन्होंने ऐसा कहा । जाहिर है, ये अपने घर वापस जाने के
लिए पैदल हजारो किलोमीटर का रास्ता चलने वाले मजदूरों के साथ साथ उन देशवासियों के
लिए भी लागु है जो आज घर में बैठे है । जो रस्ते पर है उनके लिए ये शायद ज्यादा लागु
है । मुझे एक किस्सा याद आ गया ।
१९३५ में जब गुजरात के 'कविता' गांव के अछूतों पर,
गांव के सवर्णो ने बहिष्कार डाल दिया; इसलिए क्यों की वहाँ के अछूतों ने अपने बच्चों
को सवर्ण बच्चों के साथ स्कूल भेजा । पहलेसेही बहिष्कृत जिंदगी जीने वाले अछूतों पर
इस बहिष्कार से, जो एखाद दूसरी सुविधा पहलेसे सवर्णो से मिलती थी, वो भी बंद हो गयी
। इस घुटन के चलते अछूतों ने तब गांधीजी से मदत की याचना की । महात्मा ने बजाय सवर्णो
को कुछ कहे अछूतों से कहा,
" आप लोगो
को आत्मनिर्भर होना चाहिए। आपका आत्मसम्मान
अगर इस गांव में नहीं हो रहा, तो आपको चाहिए की आप ये गांव छोड़ कर कही ओर बस जाएँ। जब आदमी रोजीरोटी के लिए अपना गांव छोड़ सकता है
तो आत्मसम्मान के लिए तो छोड़ ही सकता है। मैं उन सारे सवर्णो से, जो अछूत प्रथा खत्म
होनी चाहिए ऐसे विचार रखते है, आवाहन करता हु की वो कविता के अछूतो को स्थलांतर में
मदत करे ।"
-(Reference –
What congress and Gandhi have done to the Untouchables Chapter X page No. 264
to 266)
ऐसे
महात्मावों की हमारे देश में कमी नहीं है; ये हमारा बड़ी उपलब्धि है । आज मजदूरों की
कोई ठोस सहायता करने के बजाय उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की सलाह देना उनके जले पे नमक
के आलावा और कुछ नहीं है । ये तो वही बात हो गयी की किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति
को जो अभी मरने की कगार पर हो, उसे डॉक्टरी इलाज देने के बजाय, उसे कहना की तुम अगर
दौड़ लगावोगे तो बच जावोगे ....।
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